दूसरों से बहुत उम्मीद रखने से बचने के 4 सबक
अपने आप को खुश रखने की बजाय, दूसरों से बहुत उम्मीद रखने के परिणाम अक्सर उल्टे होते हैं। हम अपने आप को दूसरों से बहुत ज़्यादा उम्मीदें रखने की अनुमति नहीं दे सकते। क्योंकि हम ये नहीं जानते हैं कि जिस व्यक्ति से आज हम उम्मीद रख रहें हैं, वह कल भी वैसा ही रहेगा या नहीं। इससे हमे चोट पहुँच सकती है।
हम उम्मीदों से घिरा जीवन जीते हैं। लेकिन ऐसी कई उम्मीदें वास्तविक नहीं होती हैं। कई बार आपको घोर निराशा का सामना करना पड़ता है। तब आपको इस बात का एहसास होता है। आप महसूस करते हैं, कि समय आ गया है जब दूसरों के प्रति अपना नज़रिया बदलें। उनसे बहुत ज़्यादा उम्मीदें रखनी बंद करें।
दूसरों से बहुत उम्मीद रखने का परिणाम
ऐसी चीज़ों का इंतज़ार करना, जो न ही कभी आएंगी और न ही कभी आपके जीवन में घटेंगी, निराशा की ओर ले जाता है। आपको किसी से कुछ भी उम्मीद रखने की ज़रुरत नहीं है। क्योंकि आप जानते हैं कि उनका व्यवहार आपके नियंत्रण से बाहर है। क्या आप ये जानते हैं, वह कौन है जिससे आपको वाकई उम्मीद रखनी है? वह आप हैं।
आज हम आपको चार तरीकों को सीखने के लिए आमंत्रित करना चाहते हैं। इनसे आप अपने आपमें बदलाव ला सकते हैं। दूसरों से बहुत उम्मीद रखने से बच सकते हैं। इससे आपको आजादी मिलेगी। अब वह समय आ चुका है, जब आप उम्मीदें करना छोड़ें। अपने पैरों पर स्वतंत्र जीवन जीना शुरू करें।
1. निर्भरता और उम्मीदों में फर्क करना सीखें
शायद आपको इस तथ्य के बारे में पता नहीं है। आपने कई अवसरों पर अपने दुख के लिए अन्य लोगों को दोषी ठहराया है। आप किस तरह का व्यवहार करते हैं यह आपकी भावनात्मक परिस्थिति पर असर डालता है। आप दूसरों पर इसलिए निर्भर हैं, क्योंकि आपने उन्हें अपनी बातों के लिए ज़िम्मेदार बना लिया है। जबकि अपनी चीजों के लिए ज़िम्मेदार कोई और नहीं आप खुद ही हो सकते हैं।
यदि आप खुद को अच्छा महसूस कराने के लिए लगातार दूसरों पर निर्भर रहते हैं तो खुशी मिल पाना असंभव है। अपने जेहन को थोड़ा हल्का करना और उम्मीदों को छोड़ना आपको स्वस्थ मानसिकता देगा। आप उस ख़ुशी को देख पाएंगे जो आपके अपने हाथों में हैं। जिसके लिए आप खुद ही ज़िम्मेदार हो सकते हैं।
2. हमेशा वही नहीं मिलेगा जो आप दूसरों को देते हैं
हम सभी ने इसे सुना है। यदि हम किसी को कुछ देते हैं, तो बदलें में कुछ वापस मिलने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। लेकिन मन ही मन हम कुछ न कुछ वापस पाने की उम्मीद रखते हैं। हम उम्मीद कर लेते हैं कि हमारे कामों के बदलें में लोग हमे वापस कुछ दें। इस तरह हम दूसरों से बहुत उम्मीद रखने लगते हैं।
आखिर हम उस परिस्तिथि में होते हैं, जहाँ हमारी अपनी उम्मीदें पहले आती हैं। लोगों को वैसा ही स्वीकार करें जैसे वो हैं। हर कोई आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरेगा। इसके लिए परेशान न हों। आपको खुश होना चाहिए कि आप जिस चीज़ को बाँटना चाह रहे थे, उसे आपने किसी उम्मीद के बदलें में साँझा नहीं किया है।
3. किसी व्यक्ति या हालात को आदर्श न बना लें
परिस्तिथियों को आदर्श रूप देने से उम्मीदें बढ़ती हैं। उदाहरण के तौर पर, प्रेम संबंधों में हम अपने साथी को एक आदर्श संगी मानते हैं। वह सर्वश्रेष्ठ है और उसमें कोई कमी नहीं है। लेकिन वक़्त के साथ हमारी ये गलत धारणा टूटती है। दूसरों से बहुत उम्मीद रखने की हमारी गलती का हमें अहसास होता है। इसके कारण बड़ी निराशा होती है।
परिस्तिथियों या लोगों को आदर्श मान लेने के कारण आप उन्हें बदलते हुए नहीं देख पाते। ऐसा तब होता है, जब लोग अच्छे के लिए नहीं बदल रहें होते हैं। इससे चोट पहुंचेगी, दर्द होगा और आपको इस बात का एहसास नहीं हो पाएगा कि आप भी ज़िम्मेदार हैं। हम किसी भी चीज़ या किसी भी व्यक्ति को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं। जब हम चीज़ों को आदर्श मान लेते हैं तब हम ऐसा सपना देखते हैं, जो कभी वास्तविक नहीं हो सकता।
4. सबमें कमियां हैं, दोषमुक्त कोई भी नहीं
हो सकता है आप कभी दूसरे छोर पर न रहे हों, कभी किसी को निराश न किया हो। या फिर शायद कोई आपसे बहुत ज्यादा उम्मीदें लगा के बैठा था, लेकिन आप उसकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाए। आपने उसे निराशा ही दी।
कोई भी दोषमुक्त नहीं होता है। हमें खुद को वैसे ही स्वीकार करना चाहिए जैसे हम हैं। क्या हो अगर हम कभी सच न होने वाली बातों की उम्मीद छोड़कर रियलिटी को स्वीकार करना शुरू कर दें। इस तरह अगर कोई आपके साथ गलत भी करे, तो आप उसे स्वीकार कर लेंगे। क्योंकि आपने तो उससे कोई उम्मीद ही नहीं रखी थी। दूसरी तरफ, अगर नतीजा अच्छा हुआ तो यह आपके लिए एक सुखद सरप्राइज़ होगी।
दूसरों से बहुत ज़्यादा उम्मीद रखना कभी भी अच्छी बात नहीं होती। यदि आप निराश होने से थक चुके हैं, लोगों के पल-पल रंग बदलने से परेशान हैं, लोगों की खुदगर्जी से आहत हैं, तो दूसरों से बहुत उम्मीद रखने से बचिए।
जिस व्यक्ति से आपको उम्मीदें पालनी चाहिए, वह आप खुद हैं। दूसरों को स्वीकार करें। अपनी खुशी के लिए दूसरों के ऊपर निर्भर न हो जाएँ। अपने आप को ऐसे रवैये से दूर रखें, जो आपको अपने सपनो के पीछे जाने से रोकता हो। दूसरों से बहुत उम्मीद रखने का आदत छोड़िये और अपनी ज़िन्दगी को सच्चाई से जीना शुरू कीजिये।